यूपी पुलिस के सिंघम डा. अरविंद चतुर्वेदी ने किये दर्जन भर एनकाउंटर

लखनऊ। उत्तर प्रदेश पुलिस में यूं तो तेजतर्रार जांबाज अफसरो की कमी नहीं है, यह अफसर अपनी बहादुरी के कारण समय समय पर पुलिस के गौरव को बढ़ाते चले आ रहे हैं। तेजतर्रार अफसरों के क्रिया कलापों से जहां आम जनता इनकी पनाह में सुरक्षित महसूस करती है तो वहीं अपराधी इन पुलिस अफसरों के नाम से ही खौफ खाते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं 2011 बैच के आइपीएस अफसर डा. अरविंद चतुर्वेदी की। पुलिस विभाग के बेहद अनुभवशाली, जमीनी स्तर पर काम करने वाले इस जांबाज अधिकारी ने करीब 15 साल एसटीएफ में रह कर माफियाओं के चक्रव्यूह को तबाह कर दिया था। मुख्तार जैसे नामी गिरामी गिरोह की उस दौर में कमर तोड़ दी थी, जब उनका साम्रराज्य ऊरोज पर था। डा. चतुर्वेदी के कार्यकाल में लगभग 12 एनकाउंटर का श्रेय भी जाता है। जिन भी अपराधियों के एनकाउंटर किये वह किसी न किसी गैंग के सक्रिय सदस्य के रूप काम करते थे, जिनकी जरायम की दुनिया में तूती बोलती थी। आईपीएस डॉ अरविंद चतुर्वेदी की बहादुरी के कारण इन्हें दो बार राष्ट्रपति द्वारा वीरता पुरूस्कार से भी नवाजा जा चुका है। वहीं संगठित अपराधों से निपटने की आधुनिक तकनीकियों विषय पर अधिकारियों को दिए गए प्रशिक्षण से प्रभावित होकर सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकैडमी हैदराबाद की ओर से प्रतिष्ठित सम्मान “हाई अचीवमेंट सर्टिफिकेट” प्रदान किया गया है। डा. चर्तुवेदी वर्तमान समय में एसपी विजिलेंस लखनऊ के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
मॉडर्न ब्यूरोक्रेसी से खास बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि वर्ष 2006 में मुख्तार अंसारी का शार्प शूटर फिरदौस सात साल तक फरार रहा। इस बीच वह हत्या, लूट और डकैती जैसी वारदातों को अंजाम देता रहा। वह इतना शातिर था कि वारदात के बाद पुलिस की दर्जनों टीमों और इलेक्ट्रानिक्स व्यवस्थाओं को भी चकमा दे जाता था। फिरदौस मूल रूप से रायबरेली का रहने वाला था। भाजपा के मोहम्मदाबाद विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में भी उसका हाथ था। इसके बाद उसने फरारी के दौरान ही लखनऊ के महानगर में बद्री सर्राफ के यहां डकैती डाली थी। इसमें वह मुख्य अभियुक्त था। 50 हजार के इनामी फिरदौस ने सात साल की फरारी के दौरान कई जघन्य हत्याकांड, लूट और डकैती जैसी वारदातें की थीं। एक सूचना के आधार पर पुलिस अधिकारी अरविंद चतुर्वेदी की टीम ने शार्प शूटर को मार गिराया था। जिसके बाद गांधी जयंती के अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें राष्ट्रपति का वीरता पुरस्कार देकर सम्मानित किया। यह घटना वर्ष 2006 की है। फिरदौस के आतंक से व्यवसायी और राजनेता सभी त्रस्त हो चुके थे। तब एसटीएफ में तैनात अरविंद चतुर्वेदी ने अपनी टीम के साथ फिरदौस का पता लगा लिया। एसटीएफ उसे पकडऩे के लिए मुंबई के मलाड में उसका पीछा ही कर रही थी कि वह और उसके साथी ताबड़तोड़ फायरिंग करने लगे। पुलिस की जवाबी फायरिंग में फिरदौस मारा गया था। फिरदौस बहुत शातिर किस्म का अपराधी था, वर्ष 2004-2005 में जब इंटरनेट से बहुत कम लोग वाकिफ थे, तब वह इंटरनेट का प्रयोग बहुत ही शातिराना तरीके से करता था। पहचान छिपा कर वह उस समय इंटरनेट कॉल का प्रयोग करके व्यापारियों से रंगदारी मांगता था, कलकत्ता से मुंम्बई तक उसका साम्रराज्य फैला था। फिरदौस के एनकाउंटर की खबर से काफी दिन तक अपराधी सहम गये थे। वहीं मुन्ना बजरंगी के करीबी कहे जाने वाले अपराधी कृपा शंकर चौधरी भी कभी उप्र पुलिस के लिए सरदर्द बना हुआ था। बताते हैं कि 2006 में ए.के. 47 जैसे आधुनिक हथियारों का प्रयोग करता था, उसने एक प्रशिक्षु आइपीएस पर गोली चला दी थी, जिससे वह घायल हो गये थे। बेहद शातिर किस्म के अपराधी कृपा शंकर चौधरी मुम्बई में संभ्रात व्यवसायी बन कर रहता था, और दूसरे राज्यों में बड़े-बड़े व्यापारियों से जबरन धन उगाही जैसे अपराध करता था। अपराध की दुनिया में पुलिस के नासूर बने इस अपराधी का मुंम्बई में साल 2006 एनकाउंटर में पुलिस ने ढेर कर दिया। जिसमें डा. अरविंद चतुर्वेदी की अहम भूमिका रही। इसके साथ ही रूपेश उर्फ मोनू, नोएडा में आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त मंजूर डार, मध्य प्रदेश का 75 हजार रूपये का ईनामी बदमाश अनूप गुर्जर, मऊ का दुर्दान्त अपराधी राजा चौहान व पूर्वांचल के कई अपराधियों के गैंग के सदस्यों का मुठभेड़ में ढेर किया। डा. अरविंद चतुर्वेदी की कार्यशैली बिल्कुल अलग है, जहां उन्होंने संगठित अपराध करने वाले अपराधियों को मुठभेड़ में ढेर किया तो वहीं इन अपराधियों द्वारा इकट्ठा की गयी अकूत संपत्ति व हथियार आदि भी पुलिस ने सीज कर, इनके गिरोह को तबाह करने का प्रयास किया।

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